रतलाम, 26 जुलाई। हम अपनी इच्छाओं को बांधकर अपना नुकसान कर रहे हैं। जब तक परमात्मा के वचन मन में नहीं आएंगे तब तक कोई सुखी नहीं होगा। परमार्थ की भावना से कल्याण करने वाले कभी दुखी नहीं होते हैं। आपको सुखी होना है या दुखी, ये खुद को तय करना है।
यह बात वर्धमान तपोनिधि पूज्य आचार्य देव श्री नयचंद्रसागर सुरीश्वर जी म.सा. ने सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में चल रहे प्रवचन में कही। आचार्य श्री ने कहा कि हमें अपनी आत्मा का कल्याण करना है। हम यह सोचने में लगे रहते हैं कि हमें क्या मिले कि काम हो जाए। हम अपनी और परमात्मा की भावना एक साथ पूर्ण नहीं कर सकते हैं। हम अपनी इच्छा को कभी पूर्ण नहीं कर सकते हैं। चक्रवर्ती बनने के बाद भी दुखी होना पड़ता है। यदि हम 25 करोड़ कमा लेते हैं तो 50 करोड़ की कामना करते हैं। हम जब तक अपनी इच्छाओं का अंत नहीं करेंगे तब तक इस भव से पार नहीं हो सकेंगे।
गणिवर्य डॉ. अजीतचंद्र सागर जी म.सा. ने कहा कि भगवान मेरा मोक्ष करो, हमारे मन में यह प्रश्न होना चाहिए। हमारा उद्धार कब होगा, यह लक्ष्य लेकर जीवन में परमार्थ करते रहना चाहिए। श्री देवसुर तपागच्छ चारथुई जैन श्री संघ गुजराती उपाश्रय रतलाम एवं श्री ऋषभदेव जी केसरीमल जी जैन श्वेतांबर पेढ़ी रतलाम के तत्वावधान में आयोजित प्रवचन श्रृंखला में बड़ी संख्या में श्रावक, श्राविकाएं उपस्थित रहे।