कामाठीपुरा मुंबई। सुरि राजेंद्र ज्ञानपथ चातुर्मास पर्व-24 के अंतर्गत सुरि ऋषभ कृपापात्र आज्ञानुवर्ति शिष्य घोरतपस्वी मुनिप्रवर श्री पीयूषचंद्र विजयजी मुनिप्रवर श्री रजतचंद्र विजयजी बंधु बेलडी़ का यशस्वी जाहोजलाली से युक्त मंगलकारी चातुर्मास चल रहा है। श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान के अट्ठम तप की त्रिदिवसीय आराधना का आज से शंखनाद हुआ। सैकड़ो तपस्वी इसमें जुड़े। पार्श्वनाथ दादा की महिमा बताते हुए प्रभावी प्रवचनकार मुनिश्री रजतचंद्र विजयजी म.साहेब ने कहा, एक बार कमठ ने मेघ वर्षा करके प्रभु पर उपसर्ग किया,नाक तक पानी भर दिया और दूसरी तरफ धर्णेद्र देव ने आकर उपसर्ग का निवारण किया। भगवान ने दोनों में प्रति एक जैसा मध्यस्थ भाव रखा। प्रेम और करुणा का झरना प्रवाहित किया। यह सुंदर बात हमारे जीवन में भी प्रेरणादाई बने। हम राग और द्वेष से बचते रहे। ज्ञानवान आचार्य हरिभद्र सूरिजी ने भी धर्मबिंदु ग्रंथ में बताया सम दिट्ठ लोहो कांचन सोना लोहा दोनो को समान दृष्टि से देखें वो साधक बन सकता है। सैकड़ो हजारों कवियों की कलम पार्श्वनाथ भगवान के स्त्रोत और रचनाओं के लिए चली,इतना अद्भुत प्रभाव है प्रभु का। हमारे यहां 9 स्मरण प्रचलित है उसमें से दूसरा पांचवा और आठवां स्त्रोत पार्श्व प्रभु का है। जब भी मंदिर में प्रतिष्ठा होती है तो पार्श्व प्रभु का नाम लिखा जाता है। 1008 नाम 108 नाम प्रचलित है यह नाम तीन दृष्टि से रखे गए हैं गांव की दृष्टि से (नाकोड़ा पार्श्वनाथ) ,गुण की दृष्टि से(विघ्नहरा पार्श्वनाथ ) और प्रतिमा की दृष्टि से (नवखंडा पार्श्वनाथ) । पिछली चौविसी के तीर्थंकर दामोदर प्रभु के समय पार्श्वनाथ दादा की प्रतिमा आषाढ़ी श्रावक ने मेरे पार्श्व प्रभु से मेरा मोक्ष होगा ऐसे भाव से बनवाई थी। कृष्ण ने अट्ठम तप किया एवं जरासंध के युद्ध में पार्श्व प्रभु की प्रतिमा के प्रक्षालन ने श्री कृष्ण को विजय दिलाई। ऐसी जबरदस्त प्रत्यक्ष प्रभावी पार्श्वनाथ दादा की आराधना करके जीवन का कल्याण करना चाहिए।
- आगामी रविवार 4 अगस्त को आत्मा स्पर्शी शिविर का विराट आयोजन किया गया है।
- 01 से 03 अगस्त तक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ दादा के अट्ठम तपाराधना का त्रिदिवसीय भव्यतम आयोजन श्रीमती जमनाबाई भोमचंदजी ताराजी भंसाली परिवार द्वारा किया गया है।