आओ आत्मदीप जगा लें-श्रमण महेश

भीलवाड़ा (सुनिल चपलोत)। भारतीय संस्कृति में हर पर्व अपने जीवन के लिए शुभ संदेश व जीवन के लिए कुछ ना कुछ शुभ संकेत लेकर आता है। जब जब भी कोई ऋतु परिवर्तन होता है तब तब हमारे जीवन में भी मन: स्थितियों का परिवर्तन का संकेत इन पर्वों के रूप में हमें देखने को मिलता है।
उसमें ही दीपावली महोत्सव हमें यह संकेत देता है कि हमारे भीतर विचारों के राग-द्वेष-वैमनस्यता को त्याग कर भाईचारे का पुनस्थापित करें। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम अपना 14 वर्ष का वनवास व मर्यादा के विपरीत कार्य करने वाला रावण पर अपनी विजय प्राप्त कर जब अयोध्या पधारे तब संपूर्ण अयोध्या वासी उनके आगमन पर आज ही के दिन दीप महोत्सव के रूप में उनका अभिनंदन किया।
जैन धर्म में इस पर्व को आध्यात्मिक रूप से भगवान महावीर ने अपना अंतिम समय जानकर अपने संपूर्ण जीवन का सार (उत्तराध्यन सूत्र) के माध्यम से संपूर्ण जन मानस को यह धरोहर के रूप में उनके सामने (अपुठ्ठजागरणा) तीन दिन अनुवरत ज्ञान का खजाना उनके सामने प्रस्तुत किया प्रस्तुत किया,और यह संदेश दिया की हमारे भीतर क्रोध, मान, माया लोग, राग द्वेष रूपी रावण का पराभव करने के लिए आत्म आराधना कर अपने जीवन को आत्म रूपी दीप से प्रज्वलित करें, ताकि हम अपने जीवन को उस परम लक्ष्य तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करें।
इसी चिंतन के साथ भगवान महावीर अपने चार घनघाति कर्मों का क्षय करके संथारा संलेखना को धारण करते हुए इसी दिन निर्वाण को प्राप्त हुए। उस समय सभी देवगण उनके अंतिम पार्थिक देह के दर्शन करने के लिए अपने अपने लोको से वहां उपस्थित हुए। उनके आगमन से उनके शारीरिक दिव्य प्रकाश से संपूर्ण वातावरण जगमगा उठा।
इसी दिन को संपूर्ण जैन समाज जप,तप आराधना,उपासना के रूप में इस पर्व को आध्यात्मिक रूप से मनाते हैं। तो आइए हम भी भगवान महावीर के बताए हुए उन सूत्रों को हम अपने जीवन में आत्मसात करते हुए अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।