शिक्षक दिवस विशेष : शिक्षक के बिना जीवन अधूरा

लेखक – श्रीमती माया बैरागी (शिक्षिका)
सैलाना, जिला-रतलाम (म.प्र.)

हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षक का स्थान बहुत ऊंचा होता है, शिक्षक के बिना जीवन अधूरा होता है, माता-पिता के बाद शिक्षक ही वह व्यक्ति होता है जो हमें जीवन के नए रंगों को जीना सिखाता है। 5 सितंबर1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी में जन्म लेने वाले एक शिशु सर्वपल्ली राधाकृष्णन को समर्पित इस दिवस को देशभर में शिक्षक दिवस के तौर पर तमाम शिक्षण संस्थानों और शिक्षा से जुड़े प्रकल्पों के परिसरों में मनाया जाता है,यह कोई साधारण अवसर नहीं हो सकता, भारतीयता की इस बानगी पर आज पूरा विश्व गौरवान्वित है,
सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य को संपूर्ण भारतीय साम्राज्य की स्थापना का श्रेय दिया जाता है,ऐसा तभी संभव हो पाया जब चाणक्य जैसे गुरु उनके पास थे,बताते चलें कि इस परंपरा की बातें तब तक पूरी नहीं हो पाएगी जब तक हम “एकलव्य” की चर्चा ना करें,दिव्य ग्रंथ महाभारत से परिचित तमाम लोगों को यह पता है कि एकलव्य ने कुत्ते के भौंकने पर उसके मुंह को बाणों से बंद कर दिया था और इन बाणों से भर जाने के बाद भी कुत्ते के मुंह में एक खरोच तक नहीं आई,बाण विद्या संधारण में इस साधना को दिव्यास्त्र की श्रेणी में माना जाता है,गुरु के प्रभाव का इससे अच्छा उदाहरण शायद ही कहीं मिले,इतिहास में ऐसे कई गुरुओं के बारे में बताया गया है जिनके मार्गदर्शन ने समाज को एक नई दिशा दी है,जब चारों ओर अंधेरा होता है तब सूर्य सारी धरती के गहन अंधकार को दूर कर देता है उसी प्रकार एक शिक्षक पूरे समाज को शिक्षित करता है,शिक्षक हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,आज हम उन शिक्षकों के प्रति आभारी हैं जिन्होंने हमें बेहतर करने के लिए प्रेरित किया एवं मानवीय मूल्यो और नैतिकता की शिक्षा दी,शिक्षकों के प्रति हमारा कर्तव्य है उन्हें सम्मान और आदर देना,हमें हमारे आदर्श शिक्षकों के प्रति संवेदनशीलता दिखानी चाहिए,साथ ही हमें स्वयं को शिक्षार्थी के रूप में समर्पित करते हुए उनके द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करते हुए उनकी सलाह एवं सुझाव को अमल में लाना होगा,आज शिक्षक दिवस है तो यह सिर्फ आयोजनों के लिए नहीं बल्कि गुरु शिष्य परंपरा का यह अवसर पूरी मानव जाति पर पड़ने वाले इसके प्रभावों को लेकर आत्म मंथन का भी है,आत्म मंथन के इस दायरे की बातें करें तो महाभारत,एकलव्य,गुरु द्रोणाचार्य आदि से लेकर “गुरु गोविंद दोउ खड़े” की गुरु महिमा का वाचन कोई अंतिम सत्य नहीं है,यदि इस सच का दायरा इतना सीमित होता तो आज ना गुरु द्रोणाचार्य की निष्ठा सामने होती,ना ही एकलव्य का समर्पण सामने होता,न भारतीयता जीवित रहती और ना हमारा 5 सितंबर का गौरव हमारे सामने होता,तमाम शिक्षकों,आचार्यो,आध्यात्मिक गुरुओं और संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त उन तमाम संदर्भों को शिक्षक दिवस पर सादर नमन जिन्होंने जाने अनजाने हमें “गुरु तत्व” के दर्शन से निरंतर उपकृत करने का अवसर प्रदान किया, सभी आदर्श शिक्षक वृंद को समर्पित मेरी यह पंक्तियां-
“क्या कहे उनके लिए जीनसे सीखा है कहना,
यह उन्हीं की काबिलियत है कि जमाना ग्रहो तक जा पहुंचा है”
सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं।