-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’, इन्दौर, 9826091247
स्वप्न देखना बहुत आवशयक हैसाधारणा बोलचाल की भाषा में तो किसी कार्ययोजना की कल्पना करना स्वप्न देखना है। जो स्वप्न नहीं देखता वह अपने जीवन में प्रगति कर ही नहीं सकता। कार्य को मूर्त रूप देने के लिए पहलेउस कार्य का स्वप्न देखना आवशयक है। दूसरे तंद्रा में मन जहां भटकता रहता है और उसकी जो सोते समय कार्यविधि होती है वह स्वप्न है। इन स्वप्नों का बहुत बड़ विज्ञान है। जैन परम्परा की मान्यतानुसार तो सभी तीर्थंकरों की माताओं को सोलह स्वप्न आते हैं। प्रात: माता अपने पति से स्वप्नों का फल पूछती है और स्वामी उन प्रत्येक स्वप्न का फल बताते हैं। प्रसिद्ध सम्राट चन्द्रगुप्त के चौदह स्वप्न प्रसिद्ध हैं। प्रश्न यह उठता है कि स्वप्न कहाँ से आते हैं ? और क्यों आते हैं ? जैनाचार्यों ने तो वर्षों पहले ही विज्ञान, का एक-एक रहस्य खोल कर रख दिया था । शोध, अनुसंधान और अविष्कार तो बहुत बाद में हुये । एक ग्रंथ है ‘भद्रबाहु- संहिता’ जिसमें सौर-मंडल, निमित्त-विज्ञान और स्वप्न-विज्ञान का अद्भुत उद्घाटन किया गया है।
स्वप्न कई प्रकार के होते हैं- कुछ तो वात, पित्त, कफ के उद्देश्य से आते हैं, कुछ दिन में घटित-विचारित घटनाओं के अनुसार आते हैं, कुछ उनका मूल्य भी भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है । वात, पित्त और कफ के उद्देश्य से होने वाले, दिन में विचारित घटित घटनाओं के आधार से होने वाले, अधिक भोजन करने से होने वाले स्वप्नों का कुछ मूल्य नहीं है । ये शरीर के पदार्थों की विकृति से हुये, आपकी मानसिकता से हुये हैं, अत: निर्मूल्य हैं । देव प्रेरित नैसर्गिक और कर्मोदय से होने वाले स्वप्नों का मूल्य है।
आचार्य सुनीलसागर जी मुनिमहाराज ने लिखा है कि स्वप्न-विज्ञान में सर्वाधिक महत्व है काल का। काल बहुत शक्तिशाली माना गया है स्वप्न-फल दर्शन में एक तिथि को आया स्वप्न निष्फल होता है, वही स्वप्न दूसरी तिथि में बहुत फलदायी होता है, किसी तिथि में, मुहूर्त में शुभ फलदायी होता है तो किसी तिथि में, मुहूर्त में अशुभ फलदायी होता है बहुत महत्व है काल का, तिथि, वारों, नक्षत्रों और ऋतुओं का।
कुछ लोगों को स्वप्न देखने का बहुत शौक होता है। तो कुछ स्वप्नों से नफरत करते हैं। कुछ लोग जो वात-तत्व की अधिकता वाले होते हैं, वे उडऩे, गिरने, तैरने, पर्वत पर चढऩे आदि के स्वप्न अधिक देखते हैं जो पित्त की अधिकता वाले होते हैं, वे लाल पदार्थ, अग्नि संस्कार, स्वर्ण के आभूषण आदि के स्वप्न अधिक देखते हैं जो कफ की अधिकता वाले होते हैं, वे पानी, धान्य, कमल-फूल, मणि, मोती प्रवाल आदि के स्वप्न अधिक देखते हैं। जिनका कि कुछ अधिक मूल्य नहीं होता आजकल के अधिकांश स्वप्न लगभग निष्फल ही होते हैं। कुछ स्वप्न तो केवल देखने में सुख देने वाले होते हैं सार्थक स्वप्न एवं उनके फलों के ज्ञान के लिए जैन ज्योतिष ग्रन्थों का अध्ययन करना चाहिये । स्वप्नों के चक्कर में न फंसकर शुभ विचार, शुभ चिंतन और मंत्र का जाप करते हुये रात्रि में सोना चाहिये । शुभ भावों पूर्वक विश्राम करना चाहिये । और अपने आपको परमात्मा को समर्पित करते हुए यह प्रतिज्ञा करना चाहिए कि जब तक मैं सोकर नहीं उठता हूँ तब तक के लिए सभी प्रकार के पाप, परिग्रह और भोजन पानी का त्याग, हे परमात्मा! तेरे स्मरण पूर्वक शयन करता हूँ, यदि मैं सुबह सोकर उठा तो पुन: तेरा स्मरण करूँगा; तब तक के लिए तुम मेरे मन मन्दिर में विराजमान रहो, सदा ही मेरी स्मृति में रहो।