प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा की घोषणा की जाने पर अ.भा. जैन दिवाकर विचार मंच द्वारा केंद्र सरकार का आभार

आने वाली पीढ़ी भी प्राकृत भाषा को समझे- अभय सुराणा

जावरा (निप्र)। भारत की प्राचीन भाषाओ में एक भाषा प्राकृत भाषा है जिससे भारत की अन्यान्य भाषाओं और कई बोलियो का जन्म हुआ है। हमारी प्राकृत भाषा में हजारों की संख्या में जैन आगम और कई सूत्र व जैन साहित्य लिखे गए हैं जो हजारों वर्षों से प्रचलित है। अखिल भारतीय जैन दिवाकर विचार मंच के प्रणेता राष्ट्र संत कमल मुनि कमलेश के नेतृत्व में जुलाई माह में मुंबई में विचार मंच की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग में प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया था जिसमें मांग की गई थी कि प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्रदान किया जाए।
उक्त जानकारी देते हुऐ विचार मंच के राष्ट्रीय वरिष्ठ मार्गदर्शक अभय सुराणा ने बताया कि इस मांग के पीछे उनका उद्देश्य यह था कि आज भी हम जो सामयिक, प्रतिक्रमण करते हैं उसमें कई पाठ प्राक्रत भाषा में है और इसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने पर सरकार द्वारा इस भाषा के संरक्षण और सर्वधन का कार्य हो सकेगा और आने वाली पीढ़ी भी इस भाषा के महत्व को अच्छी तरह समझेगी।
केंद्र सरकार द्वारा हमारी मांग को स्वीकार करते हुए प्राकृत भाषा को शास्त्रीय दर्जा प्रदान करने की घोषणा की जाने पर विचार मंच के संस्थापक अध्यक्ष मोतीलाल बाफना राष्ट्रीय वरिष्ठ मार्गदर्शक अभय सुराणा राष्ट्रीय महामंत्री अभय श्रीमाल युवा शाखा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आशीष जैन सुशील कोचट्टा नेमीचंद जैन राजकुमार हरण अशोक चोपड़ा पारस छाजेड़ मनीष जैन वीरेंद्र रांका आकाश चोपड़ा श्रीमती दमयंती दंड रेखा सुराणा आशा जैन शिल्पा जैन ज्योति गंगवाल नेहा जैन चंचल पटवा पुष्पा चपडोद मधु चोपड़ा आदि ने केंद्र सरकार का आभार व्यक्त किया।

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