एक कविता-तुम्हारे नाम

प्रो.डी.के.शर्मा
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प्यार की, भावना की
मुरत हो तुम,
अनुपम सुन्दरी
खुबसूरत हो तुम।
चशमे के उस पार से
जब देखती हो तुम,
दिल के आर पार
नजर चली जाती है।
तुम समझती बहुत
किन्तु कहती कम,
बिना वार किए
जान लेती हो तुम।
छू लो तो सिहरन
होती है तुम में,
समझती सब हो
मगर कहती नहीं हो।
कोशिश तो यही है,
तुम्हें बना लू मैं अपनी
मगर सब निर्भर है
तेरी मर्जी पर।
अधिक प्रतिक्षा
ना करवाना मुझसे
वर्ना जान निकल जाएंगी मेरी।