कोरोना के वायरस जैसा है, मलीनता का वायरस-आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा

छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन

रतलाम,24 जुलाई। मलीन बुद्धि का धनी व्यक्ति ना तो यहां सुखी रहता है और ना ही वहां सुखी होता है। मलीनता का वायरस, कोरोना के वायरस जैसा है। यदि ये वायरस लगा रहे, तो हमे सदबुद्धि नहीं मिलेगी। सदबुद्धि नहीं होगी, तो सदगति नहीं मिलेेगी।
यह बात परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान आचार्यश्री ने कहा कि मलीनता, दुर्मति का छटा दोष है। ये ऐसा दोष है, जिसके सहारे दूसरे कई दोष अपने आप आ जाते है, इसलिए इससे बचना आवश्यक है। महापुरूषों के अनुसार बुद्धि के चार प्रकार मंद बुद्धि, मलीन बुद्धि, मित्र बुद्धि और महान बुद्धि होते है। पूरा संसार मंद अथवा मलीन बुद्धि से घिरा हुआ है। मंद बुद्धि वाला खतरनाक होता है, तो मलीन बुद्धि वाला और ज्यादा खतरनाक है। मंद बुद्धि वाला कुछ जानता नहीं, जबकि मलीन बुद्धि वाला ज्ञान होते हुए र्दुबुद्धि का पात्र बनता है। र्दुबुद्धि से बचने के लिए सभी को आत्म विवेचन करना चाहिए कि वे मंद बुद्धि के धनी है अथवा मलीन बुद्धि के मालिक है।
आचार्यश्री ने कहा कि जैसे व्यक्ति कपडे बदलता है, वैसे ही बुद्धि में भी परिवर्तन करना चाहिए। अन्यथा बुद्धि कल भी मलीन थी, आज भी है और कल भी रहेगी और मलीन बुद्धि से कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। आचार्यश्री ने बताया कि मनुष्य जीवन मित्र बुद्धि अथवा महान बुद्धि हासिल करने के लिए मिला है। मित्र बुद्धि जिसे मिल जाए, उसकी बुद्धि महान खुद हो जाती है। इसलिए सबकों अपनी बुद्धि को चेक करते रहना चाहिए। यदि मलीनता है, तो साधना करना आवश्यक है। साधना की शक्ति मंद को तीव्र और मलीन को निर्मल बना देती है। साधना करने वाले की कभी हार नहीं होती, उसकी तो बस जीत ही जीत होगी।
आरंभ में उपाध्याय प्रवर प्रज्ञारत्न श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचारण सूत्र का वाचन किया। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया। इस मौके पर कई तपस्वियों ने आचार्यश्री ने तप आराधना के प्रत्याख्यान लिए।