उत्तर भारत के लगभग सभी पञ्चाङ्गकर्ताओं एवं देश के लगभग सभी पञ्चाङ्गकर्ताओं ने दीपावली पर्व 31 अक्टूबर 2024 को मनाया जाना अंकित किया है तथा पश्चिम भारत के अधिकांश पञ्चाङ्गकर्ताओं ने दीपावली पर्व 01 नवंबर 2024 को मनाया जाना अंकित किया है। जबकि काशी के ज्योतिषी इस काल गणना को त्रुटिपूर्ण मानते हुए दीपावली 31 अक्टुबर को होने की बात कहते है। इस प्रकार दीपावली पर्व कब मनाया जाएं इस बात को लेकर जन साधारण में असमंजस की स्थिति है । अतः सभी विद्वतगण को पुनः एक बार इस पर विचार करना चाहिए क्योंकि इससे समाज में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है और सनातन धर्म तथा शास्त्रों से लोगों का अविश्वास बढ़ रहा है। अत: हमें ज्योतिषीय सिद्धांतों के साथ धर्म शास्त्रों का तुलनात्मक, तार्किक एवं व्यवहारिक आधार पर सम्यक् प्रकार से अध्ययन कर पर्व काल तिथियों के निर्धारण में सामंजस्य स्थापित कर वैज्ञानिकता लाना होगी ।
सामान्यतया प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा ततः क्रमात्। दीपवृक्षाश्चदातव्याः शक्त्यादेवगृहेषुच॥ तथा *दीपान्दत्वा प्रदोषे तु लक्ष्मीं पूज्य यथा विधि आदि -भविष्य पुराण – अयं प्रदोषव्यापिग्राह्यः। – निर्णय सिंधु – दिनद्वये सत्त्वे पर:। तथा
दंडैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि। तदाविहायपूर्वेद्युः परेऽह्निसुखरात्रिकेति।
निर्णयसिंधुकार – दिनद्वये प्रदोष सत्त्वे पर: अर्थात् अमावस्या तिथि दो दिन व्याप्त होने पर यदि दूसरे दिन अमावस्या का रजनी से न्यूनतम 1 दण्ड योग होने की स्थिति में दूसरे दिन दीपावली मनाना शास्त्रोचित होगा । किन्तु उभय दिन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या तथा दूसरे दिन अमावस्या का रजनी के साथ योग वर्णित है । रजनी से तात्पर्य प्रदोष से नहीं अपितु प्रदोष काल के बाद से है । तिथि निर्णय एवं पुरुषार्थ चिंतामणि आदि ग्रंथों ने स्पष्ट किया है कि — सूर्यास्त के अनंतर तीन मुहूर्त तक प्रदोष एवं उसके बाद के काल की रजनी संज्ञा होती है । यथा —
नक्षत्रदर्शनात्संध्या सायं तत्परतः स्थितम्।
तत्परा रजनी ज्ञेया
-पुरुषार्थ चिंतामणि –
उदयात् प्राक्तनी संध्या घटिकाद्वयमिष्यते। सायं सन्ध्या त्रिघटिका अस्तादुपरि भास्वतः॥ त्रिमुहूर्तः प्रदोषः स्याद् भानावस्तंगते सति। तत्परा रजनी प्रोक्ता तत्र कर्म परित्यजेत्॥ – तिथिनिर्णय: –
त्रियामां रजनीं प्राहुस्त्यक्त्वाद्यन्तचतुष्टयम्। नाडीनां तदुभे सन्ध्ये दिवसाद्यन्तसंज्ञके।। इन धर्मशास्त्रीय वचनों से यह स्पष्ट हो रहा है कि रजनी प्रदोष नहीं अपितु प्रदोष काल के बाद की संज्ञा है अतः दंडैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि। अर्थात् धर्मशास्त्रीय वचनो के अनुसार – रजनी प्रदोष नहीं अपितु प्रदोष काल के बाद की संज्ञा है अत: 1 नवंबर को अमावस्या का रजनी से कोई योग नहीं हो रहा है और जिन क्षेत्रों में अमावस्या का प्रदोष के एक भाग से संगति हो भी रही है तो वहाँ पर रजनी का अमावस्या का कोई योग नहीं हो रहा है । अत: दीपावली पर्व 31 अक्टुबर को ही मानना शास्त्र सम्मत होगा । पर्व काल के अनुसार ही तिथि का उद्यात, मध्याह्न, सांयकाल अथवा रात्रि काल आदि में त्योहार मनाया जाता रहा है । अन्य संदर्भ भी दृष्टव्य है :–
अर्धरात्रे भ्रमत्येव लक्ष्मीराश्रयितुं गृहान्। अतःस्वलंकृतालिप्तादीपैर्जाग्रज्जनोत्सवाः। सुधाधवलि ताः कार्याः पुष्पमालोपशोभिताः इति। ब्रह्म पुराण । तथा
अर्धरात्रे भ्रमत्येव लक्ष्मीराश्रयितुं गृहान्। अतः स्वलंकृता लिप्ता दीपैर्जाग्रज्जनोत्सवाः।। इति ब्राह्मोक्तेश्च ।। प्रदोषार्धरात्रव्यापिनी मुख्या। एकैकव्याप्तौ परैव; प्रदोषस्य मुख्यत्वादर्धरात्रेऽनुष्ठेयाभावाच्च तथा अपराह्ने प्रकर्तव्यं श्राद्धं पितृपरायणैः। प्रदोषसमये राजन् कर्तव्यादीपमालिकेति क्रमः। तथा पुरुषार्थ चिंतामणि एवं जय सिंह कल्पद्रुम आदि तथा अपराह्ने प्रकर्तव्यं श्राद्धं पितृपरायणैः। प्रदोषसमये राजन् कर्तव्यादीपमालिकेति क्रमः।
सामान्यत: दीपावली पर्व महालक्ष्मी के पूजन और अमावस्या जागरण का पर्व होने के कारण अर्धरात्रि व्यापिनी अमावस्या का होना आवश्यक है । अत: निष्कर्ष यह है कि 31 अक्टूबर 2024 को अर्धरात्रि व्यापिनी अमावस्या होने के कारण दीपावली इसी दिन मनाई जाएगी तथा 01 नवंबर 2024 को स्नान दान व व्रत की अमावस्या तिथि होगी ।
डॉ. मनीष शर्मा “प्रबुद्ध”
पीएच्.डी ( संस्कृत साहित्य )
निदेशक “
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