रतलाम । (डाॅ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’)। व्यक्ति को रूप से नहीं आचारण से सुन्दर होना चाहिए।भगवान की भक्ति से सुंदरता प्राप्त होती है, ब्यूटी पार्लर से नहीं। श्रावक श्रद्धावान, विवेकवान, क्रियावान होता है। श्रावक के लिए आवश्यक है कि वह प्रत्येक क्रिया विवेक से करे। यदि व्यक्ति का आचारण सुन्दर है, परोपकार के कार्य कर रहा है, समाज सेवा कर रहा है, जीवों पर दा के भाव रख रहा है, माता-पिता, वृद्धों की सेवा कर रहा है तो वह कैसा भी कुबड़ा, सांवला हो लोगों में उसे सम्मान प्राप्त प्राप्त होगा ही। वही उसकी असली सुन्दरता है। मंदिरों के बाहर बने चबूतरे पर बातें करने वाले तो बहुत हैं, तेरी मेरी करने वाले बहुत हैं, पर भगवान की पूजा-अभिषेक करने वाले बहुत कम है। ब्यूटी पार्लर कराने से सुंदरता प्राप्त नहीं होती है। जो सुंदर है उसे श्रृंगार करने की आवश्यकता नहीं होती। भगवान की भक्ति करने से सुंदरता प्राप्त होती है। ये विचार रतलाम में ससंघ साधना रत गणाचार्य श्री विरागसागर जी के शिष्य श्रमणचार्य श्री विमदसागर जी मुनिमहाराज ने एक धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि शास्त्रों में कहा है- ‘‘भक्तेः सुन्दररूपम्‘‘, भक्ति से सुन्दर रूप प्राप्त होता है। ऊपर से तो चेहरे को क्रीम आदि से चमका सकते हैं पर वह कितने समय तक चमकेगा जैसे ही पसीना आयेगा सब धुल जाएगा। सीता जन्म से सुंदर थीं, अंजना जन्म से सुंदर थीं, वे ब्यूटी पार्लर कराकर सुंदर नहीं बनी थीं। आचरण से सुंदर थीं, चारित्र से सुंदर थीं। शरीर से सुंदरता कोई मायने नहीं रखता। आचरण सुंदर होना चाहिए। कोयले को कितना ही ब्यूटी पार्लर में चमकाओ, भैंस को गोल्डन क्रीम लगाओ पर वह काली ही रहेगी। श्रीपाल को कुष्ठ रोग हुआ तो उसने गुरु की भक्ति की, भगवान की आराधना की, आठ दिन का सिद्धचक्र अनुष्ठान किया, जिससे उसका कुष्ठ रोग दूर हो गया। भगवान की भक्ति, गुरु की सेवा से सुंदर और स्वस्थ शरीर की प्राप्ति होती है और दूसरों के उपकार-अच्छाई करने से जो संतोष आनंद प्राप्त होता है वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलेगा।